Friday 14 October 2016

बालसमंद झील जोधपुर का इतिहास

इस झील का निर्माण 1159 ईसवीं मे परिहार शासकों द्वारा किया गया था । ईन्दा प्रतिहार के उत्पति की जानकारी बालसमन्द झील से भी मिलती है ।
बालसमन्द झील का निर्माण राव शुरशेन प्रतिहार जी ने करवाया उस समय इस झील का कोई खास नाम दिया ही नही गया था झील का निर्माण पूरा हुआ ही था और उस समय बारिस का मौसम था परन्तु उस साल मारवाड में बारिस हुई नही तो राज्य में अकाल की स्थिति पैदा हो गयी तो प्रतिहार शासक राव जी और उनके कुछ साथी काशी गए पंडितो और विध्वानो से इस समस्या का हल करवाने के लिए तो पंडितो ने कहा की झील के निर्माण करते समय भारी चूक रही है इसलिये बारिस नही हो रही हे तो राव जी ने पंडितो से कहा की इस समस्या का समाधन क्या होगा तो पंडितो ने कहा की झील में एक यज्ञ किया जाय और यज्ञ पूर्ण होने पर राजकुमार की उसमे आहुति दी जाय तो राव इस बात को सुनकर हैरान हो गए और वापस मंडोर मारवाड आ गए और इस बात के लिये दरबार बुलाया गया और इस बात पर बहस के लिये किसी ने कुछ भी नही कहा तब भरे दरबार में राणी( राव की पत्नी )मारवाड की महारानी ने कहा की अगर जनता ही नही रहेगी तो राजकुमार और राजपरिवार का क्या महत्व । तब राव ने निर्णय लिया और यज्ञ की शुरुआत का आदेश् दिया यज्ञ पंडितो के कहे अनुसार पूर्ण हुआ तब राजकुमार की आहुति दी ।
जिस राजकुमार की आहुति दी उसका नाम बुध प्रतिहार था। यज्ञ पूर्ण होते ही आसमान में धूल भरी आंधिया चली और तेज गर्जना के साथ बारिस हुयी और झील लबालब पानी से भर आई तब किसी को झील में एक टोकरी तैरते हुई दिखाई दी तो उसको राव ने मंगवाया तो वो वही टोकरी थी जिसमे राजकुमार को यज्ञ के समय अंदर सुलाया गया था और उस टोकरी में राजकुमार जिन्दा था तब राव राजकुमार को शुभ मुहर्त के हिसाब से महल में लाये और पुरे मंडोर (मारवाड)ने उत्सव मनाया गया और राजकुमार को भगवान इंद्र की पद्धवि दी गयी राजकुमार का नाम बुध से इंद्र हुआ और आगे चलकर इनके वंशज इन्दा प्रतिहार कहलाये। और झील का नाम उसके बाद में बलसमन्द पड़ा ।

Source: Keshar Singh Facebook Page

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